Friday, October 7, 2011

मोहब्बत का गीत

-डा. रंजू सिंह

सोचती हूँ कि कोई मोहब्बत का गीत लिखूं ,
अपनी कलम से अब कोई रंगीन बात लिखूं ,
तुझसे मिलन का कोई तस्सवर लिखूं ,
या फिर हाल-ए-शब-ए-इंतज़ार लिखूं ,
जिसका मेरे फ़साने में ज़िक्र नहीं वो बात लिखूं ,
या कैसी गुज़री है मुझपे नागवार लिखूं ,
तुम्हे आफ़ताब और खुद को माहताब लिखूं,
या तेरे हिज्र में ग़म-ए-जहाँ का हिसाब लिखूं,
मैं वो फूल हूँ जो शबनम को तरसे,लिखूं,
या तू भंवरा मैं फूल महका-बहका सा लिखूं,
कली हूँ,फूल हूँ या फ़िज़ा हूँ,लिखूं,
या मैं पूरा गुलिस्तान हूँ ऐसा लिखूं,
तेरी उल्फत का आज सारा फ़साना लिखूं,
या तेरे जूनून में डूब के दिल की बात लिखूं,
तेरी आँखों की गहराई के बारे में लिखूं,
या तेरी दिलकश निगाह के बारे में लिखूं,
तेरी आघोष में बिताए लम्हों के बारे में लिखूं,
या फिर पूरे होश-ओ-हवास में गीत कोई लिखूं,
वो हसीन वादियों के बारे में लिखूं,
या तेरे हसीन वादों के बारे में लिखूं,
ये वादियाँ,ये घटाएं,सब में है तेरा ही चेहरा,
अब इस से ज़्यादा और भला मैं तारीफ़ में क्या लिखूं,
तेरी साँसों की लह को पहचानती हूँ,ये लिखूं ,
या तेरे क़दमों की आहट भी पहचानती हुए भी लिखूं,
तेरे हाथों की हरारत को महसूस करते हुए लिखूं,
या फिर तेरे सीने पे सर रख के ये गीत लिखूं,
कुछ मुस्कुरा कर तेरी ओर देख कर लिखूं,
या नज़रें झुका कर,कुछ शरमा कर लिखूं
वो हसीन नगमें जिनपे धड़के है दिल लिखूं,
या फिर धड़कते हुए दिल से सिर्फ तेरा नाम लिखूं ,
आज जिगर क खून से तेरा फ़साना लिखूं,
या फिर कोई खुशबुओं का गीत सुहाना लिखूं,
फूल का भँवरे से इश्क लिखूं,
या फिर हवा का मेरे आंचल से टकराना लिखूं,
काले बादलों में झूम के मोर की तरह लिखूं,
या फिर किसी चकोर की तरह अपने जूनून में लिखूं,
सोचती हूँ कि आज कोई मोहब्बत का गीत लिखूं,
अपनी कलम से अब कोई रंगीन बात लिखूं |

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