Tuesday, December 27, 2011

मनुष्य तो अस्तित्व की पहचान है

- अरविंद योगी
अस्तित्व के आकाश में ,मनुष्य बादल की एक छाया
जी भर बरसा चला गया, जाने फिर वो कहाँ गया ?
सपनो के फसल उगाया, कर्म वृक्ष से फल को खाया
अस्तित्व में खुद को पाया, अस्तित्व को मनुष्य बनाया
परिवर्तन का एहसास कराया,अस्तित्व की पहचान बताया
अस्तित्व-मनुष्य में पावन रिश्ता है,मनुष्य अस्तित्व का फरिस्ता है!
अस्तित्व के सागर में जीवन के गागर से,
एक उफनाती नदी सा खोकर मनुष्य प्यार से,
एहसासों की गहराई में मनुष्य बन उतरता है,
मुस्कराता हुआ लहर बन फिर चमकता है ,
हँसता है,हँसता है, कभी रोता है, रुलाता है ,
अस्तित्व में मनुष्य है, मनुष्य में अस्तित्व है,
अनंत अस्तित्व की अनुपम कृति है मनुष्य ,
अस्तित्व चित्रकार है ,मनुष्य उसका चरित्र है,
अस्तित्व की रचना में, मनुष्य सर्वोत्तम चित्र है ,
सारे रंग भरे हैं मनुष्य में, अनंत अस्तित्व के!
मनुष्य अस्तित्व के आकाश में उन्मुक्त उडान भरने लगा
मनुष्य बदलने लगा,अस्तित्व से भटकने लगा,
संधि कम विग्रह अधिक अब ,मनुष्य में अस्तित्व से ,
मनुष्य और अस्तित्व का अटूट सम्बन्ध ,
आज फिर मनुष्य को समझाना होगा ,
अस्तित्व बन किसी मनुष्य को आना होगा ,
अस्तित्व ईश्वर है , मनुष्य जिसकी संतान है ,
मनुष्य में खुदा है , मनुष्य में भगवान है ,
अस्तित्व से ही मनुष्य बना महान है ,
*योगी* मनुष्य तो अस्तित्व की पहचान है !
यह कविता क्यों ? मनुष्य और अस्तित्व का अन्तः सम्बन्ध जितना ही सरल है उतना ही जटिल और रहस्यमय भी है बशर्ते मनुष्य खुद को पहचाने क्योंकि सम्पूर्ण श्रृष्टि के अस्तित्व में मनुष्य सर्वोत्तम सजीव कृति है! मनुष्य में ही अस्तित्व का रूप सत्यम है,शिवम् है, सुन्दरम है !

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