Tuesday, December 27, 2011

सुख क्या, दुख क्या

- राजीव जायसवाल

सुख क्या है
दुख क्या है
मन की अवस्था है
सुख सोचा तो
सुख है
दुख सोचा तो
दुख है |

कभी हंसता है
कभी रोता है
खुशी से नाचता
ना फूला समाता है
नगाड़े ढोल बजवा कर
बड़े उत्सव मनाता है
सजी घोड़ी पे चढ़ता है
दुल्हनिया घर को लाता है |

कभी छाती उदासी है
घटा भी गम की छाती है
कभी दौलत निकलती है
कभी शोहरत फिसलती है
कभी इज़्ज़त नहीं रहती
तबाही साथ चलती है |
ना साथी साथ देते हैं
सभी बच कर निकलते हैं |
 
बहाने लाख होते हैं
कभी हँसने के, रोने के
समंदर आँसुओं से भर
खुदी को खुद डुबाने के |
 
जो सुख हो तो
ना पागल हो
जो दुख हो तो
दुखी ना हो
समन्व्य सुख से ,दुख से कर
रजा में उस की राज़ी हो
प्रभु की बंदगी को कर
ना सुख होगा, ना दुख होगा
ख़त्म सारा भ्रम होगा |
ख़त्म सारा भ्रम होगा |

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