Tuesday, December 27, 2011

मेरा मेरा

- बिक्रमजीत सिंघ जीत

मेरा मेरा करके बन्दे, तूनें आयू समस्त गुज़ारी
प्रभु भक्ति व् जन की सेवा, कदापि न ह्रदय धारी

उलझा माया जाल में इतना, मूल गया तू भूल
भुला के सच्चे साईं को, रहा मोह ममता में झूल

संयोगवश हैं पाये तूनें, यह बहन भाई सन्बन्धी
साथ तेरा न देगा कोई, टूटी जब श्वासों की सँधी

टूटे किसी घड़े से जैसे, रहे रिसता टिप टिप पाणी
वैसे ही श्वासों की पूँजी, जाये घटती हर पल प्राणी

व्यर्थ गवा न समय "जीत"तूँ, सत्य मार्ग अपनाले
श्वास आगामी आये न आये, महिमां प्रभु की गा ले

हो सुचेत कर आत्ममंथन, दिव्य ज्योत तू पाएगा
सफ़ल व् खुश्मय जीवन होगा, अंत पर्मपद पाएगा

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