Sunday, November 13, 2011

ऐसे मत जी

- राजीव जयस्वाल

ऐसे
मत जी
विष घूँट
मत पी |
अमृत सागर
अंतर तेरे
मंथन कर
भले का
बुरे का
चिंतन कर |
 
ऐसा कर
हलाहल
अमृत में बदल
पाप वो
मन को जो
दूषित करे
पुण्य वो
मन को जो
सुशोभित करे |
 
हर पल
सोता क्यों
हर पल
रोता क्यों
अब जाग
जो सोया
सो गए
उस के भाग |
 
आराम
मत कर
कर्म कर
कर्म को
निज धर्म कर
उठ जा
आकाश को
छू ले
सूरज सजा
मस्तक पर
तारों की
माला पिरो ले |
 
कर प्रहार
मुष्ट मार
पर्वत को तोड़
नदिया को मोड़
आकाश के
सीने को छेद
पाताल से
पानी निकाल |
 
ना पाप कर
स्वयं पर
विश्वास कर
उठ , हो खड़ा
प्रहार कर
पाप, अत्याचार पर
ना रुक
ना झुक
ना मर
ना डर
जो करना है
वो कर
इतिहास में
हो जा अमर |

1 comment: