- अरविंद योगी
मेरे हाँथ में तलवार है
काट दूंगा जीभ तुम्हारी
भूल से भी मुझे तुम
आदमी मत कहना
अब मै आदमी नहीं हूँ !
मर चुका है आदमी शब्द
मर चुका है जीवन
कभी मै आदमी था
ह्रदय से उदार था
कर्म से महान था
धरा पर बना कभी
भक्ति से भगवान था
ज्ञान का प्रकाश था
आदमी में भगवान की
स्नेहिल छाया का एहसास था
आदमी तब आदमी के साथ था
जीवन से बहुत पास था
आदमी धरा पर भगवान था
आदमी मत कहना
अब मै आदमी नहीं हूँ !
हाँ मै आदमी था और आज भी
आदमी की तलाश में हूँ
खोजता हूँ अपने ह्रदय में
खोये आदमी को हर आदमी को
आज समाज स्वार्थ में खो रहा है
स्वार्थ में जी रहा है आदमी
जीना दूसरों के लिए मरना
आदमी की पहचान है
आदमी मत कहना
अब मै आदमी नहीं हूँ !
aadmi se khatm hoti aadmiyt par ek tikha prhaar hai aapki kavita hai .. lupt pray hoti snvednaon ke liye tadf hai .. bahut umda
ReplyDeleteaabhar aasha ji sadar naman jai bharat
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