Saturday, October 8, 2011

करुण राग

-आशा पांडेय ओझा

प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ो आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये
मन का कोना कोना दु:खमय सागर सा भर आये बार-बार
रो पड़े आँख रिमझिम सावन सी ढुलक-ढुलक जार-जार
आनंदमय छंद, गीत ,गंध का जीवन प्रवाह भी आज ठहर जाए
प्रिय ऐसा करुण राग..........

दहकती हुई रेत के मन सांस में सावन कि व्याकुलता भर दो
रात कि गुनगुनाती हुई चांदनी पर ,सुबकती हुई वेदना धर दो
नाचती उषा के घुँघरूओं कि धुन भी टूट टूट कर बिखर जाये
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ो आज कोई..........

अनमनी हो जाये दूज के चाँद की पहली अछूती वो तरुण किरण
बासंती मेघ के प्रथम स्पर्श को दे दिया जिसने अपना जीवन
छेड़ो वो प्रथम प्रणय स्पन्दन के विकल उददगार कि दिल भर आये
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ो आज कोई.........

जल जाये अंतस कि आग से ,रोमंचित ,स्निग्ध ,मधुर ,मंद पवन
भेंटने नभ से चल पड़े तृषित वसुंधरा का करुण, व्यथित मन
पौंछने कुमुदनी के ढलकते आंसू ,चाँद भी आज जमीं पर उतर आये 
प्रिय ऐसा करुण राग..........

सुनकर विरह का तान पपीहा भी गाने लगे पिहु-पिहु के गान
सुबक उठे तिमिर के वक्ष पर सोयी बेखबर यामिनी के मन प्राण
आद्र हो जाये गगन के तारे,हर दिशा कि आँख झर जाए
प्रिय ऐसा करुण राग छेड़ो आज कोई कि रोम रोम सिहर जाये

(पुस्तक "दो बूँद समुद्र के नाम" से)

1 comment:

  1. Kawaldeep Singh ji aapka hardik aabhar is kavita ko Jhpkara me prkashit karne ke liye

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