Sunday, October 30, 2011

हास्य-व्यंग्य - वन्दे श्वान भारतम

- पंडित सुरेश नीरव

मानव समाज में कुत्तों की हमेशा से पूछ रही है। ऐसा माना जाता है कि उसकी इस पूछ में सारा योगदान खुद उसकी पूंछ का ही रहा है। उसकी हिलती पूंछ देखकर बेचारे आदमी का भी मन पूंछ हिलाने को ललचा-ललचा जाता है। भले ही ईश्वर ने उसे कुत्ते की तरह पूंछ नहीं दी फिर भी वह अफसर के आगे पूंछ हिलाने का कठिन कारनामा कुत्तों की प्रेरणा लेकर कर ही डालता है। पूंछ हिलाने की कुत्तों की इस प्राचीन लोककला का मानव हमेशा से ही मुरीद रहा है। इसीलिए तो सतयुग से लेकर आज के लेटेस्ट कलियुग तक कुत्तों के रुतबे में एक मिलीमीटर की भी कमी नहीं आई है। जिन वेदों में द्विवेदी या त्रिवेदी की तो बात छोड़िए एक अदद किसी चतुर्वेदी को भी जगह नहीं मिल पाई उन पवित्र वेदों में एक नहीं बल्कि श्याम और शबिल नामक दो कुत्तों ने अपनी हाजरी दर्ज़ कराके साबित कर दिया कि कुत्तों के आगे आदमी की कोई हैसियत नहीं। आदमी से कुत्ता हमेशा ज्यादा प्रतिष्ठित रहा है। शायद इसलिए कि कुत्ता कभी चरित्रहीन नहीं होता है। और न केवल वो आदमी को अपराधी के घर तक पहुंचाता है बल्कि सोए हुए काल देवता मिस्टर यमराज को भी सिंसियरली जगाता है। अपराधी तक कुत्तों के पहुंचने की मौलिक प्रतिभा के आगे तब बड़ा धर्मसंकट खड़ा हो जाता है जब खुद अपराधी कुत्ते पाल लेते हैं और कुत्तों से सावधान की तख्ती अपने दरवाजे पर टांग देते हैं। सावधान तो आदमी को अपराधी से रहना चाहिए शरीफ कुत्तों से सावधान होने की क्या जरूरत होती है। हो सकता है यह बोर्ड मकान मालिक अपने चोर भाइयों को सावधान करने के लिए लगाते हों क्योंकि ऐसी मान्यता है कि कुत्ते चोरों पर ही भूंकते हैं। आखिक कुत्तों की भी तो कोई हैसियत होती है। गरज हो तो वे कुत्तों का मुंह चाटें। बहुत कम लोग जानते हैं कि श्रीराम के यंगर ब्रदर भरत कुत्तों के बड़े शौकीन थे। रामचंद्रजी कुत्तों- के शौकीन नहीं थे। कुत्तों की दुआओं से ही भरत अयोध्या के राजा बने और कुत्तों से बेरुखी के कारण ही राम को वनवास भोगना पड़ा। भगवान भैरों और दत्तात्रेय का श्वान प्रेम इंटरनेशनली जगजाहिर है। यह कुत्ते की ही दमखम थी कि वो अपने अकेले के इवविटेशन पर मालिक धर्मराज युधिष्ठिर को विद फेमली सशरीर स्वर्ग ले गया। अगर आदमी की इतनी औकात होती तो स्वर्ग से लात खाकर उसे त्रिशंकु नहीं बनना पड़ता। कलियुग में चंद्रमा से मामा के तमाम रिश्ते बनाकर भी आदमी चांद पर श्वानसुंदरी लायका से पहले नहीं जा पाया। गोरे-काले के मुद्दों पर जानवरों की तरह लड़ते हुए आदमी को कुत्तों से ट्यूशन पढ़कर नस्ली सदभाव का पाठ सीखना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुत्तों का कुकरमूल संस्कार है। एक बार एक सिरफिरे एकलव्य ने तीर से एक श्वान का मुंह बंद कर अभिव्यक्ति पर सेंसरशिप लगाने की जघन्य हरकत की थी। इस उद्दंडता के दंडस्वरूप ही द्रोणाचार्य ने उसका अंगूठा कटवाकर कुत्तों के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया था। खुशी की बात है कि आजादी के बाद हमारे देश में कुत्तों- की इज्जत में माइंडब्लोइंग इजाफा हुआ है। कुत्तों के इस जलवो जलाल से कुंठित होकर राष्ट्रपशु शेरों और बाघों ने आत्म हत्याएं करली हैं और बचे-खुचों की सुपारी उठवाकर गीदड़ो ने हत्याएं करवा दी हैं। ताज्जुब नहीं कि संख्याबल के आधार पर कल कुत्तों को भारत देश का राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया जाए। हमें खुशी है कि भले ही हमारा न हो मगर अपने देश में कुत्तों का और इन त्रैलोकमान्य मान्यवर कुत्तों के कारण इस देश का भविष्य भरपूर उज्ज्वल है। कुत्ता होना ही बड़ी बात है अब इंडिया में। वंदे श्वान भारतम..।

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