Saturday, October 29, 2011

आइनों ने नहीं सीखा..

- महिंदर रिश्म

किरण रौशनी की नज़र नहीं आती कहीं
सूरज हाथ में ले किधर चला गया है कोई
 
जख्म खुले हैं टीस भी बे-तरह सी उठती है
तीखे नश्तर फूलों में क्यों धर गया है कोई
 
सदायें लौटी हैं उस दर से बेआबरू हो कर
शायद परछाइयों ही से डर गया है कोई
 
मुहबत नहीं मोहताज मनसुई हवाओं की
इलज़ाम मौत का दूसरे पे धर गया है कोई
 
आइनों ने नहीं सीखा कुछ भी झूठ कहना
बीनाइओ में ही क्यों उतर गया है कोई

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