Saturday, October 29, 2011

तुम कहाँ हो ?

- आशा पांडेय ओझा

तुम कहाँ हो ?
किरणों में रस घोलती तरंगो में
असंख्य तारों के विविध रंगों में
झुरमुट में अटके चाँद को निहारती
गीत भरे आंसू से प्रिय चरण पखारती
कहाँ ढूँढूं तुम कहाँ हो ?
 
हवा की लजीली खुनकियों में
किसी विरहनी की हिचकियों में
किसी बटोही की लोटती राह में
या उसकी राह ताकती निगाह में
ठहरी तुम कहाँ हो ?
 
कलेजे में इतनी ममता लेकर
इतनी संयुक्त क्षमता लेकर
कलियों सी कोमलता लेकर
अमृत घटों की मधुरता लेकर
रस सी घुलती तुम कहाँ हो?
 
पर कटे व्याकुल पांखी सी
झर-झर आंसू झरती आंखी सी
रात भर करवटों में जगी थकी रात सी
सूरज मिलन के प्रतीक्षा में बैठे प्रभात सी
छटपटाती तुम कहाँ हो ?
 
धुआं- धुआं सी क्यों उडती हो
मुझसे बिछड़ कर किससें जुड़ती हो
किस सीप का मोती बनने की चाह है तेरी
किन नयनों की ज्योति बनने की चाह है तेरी
वो कहाँ है और तुम कहाँ हो ?
 
किसको जितना चाहती हो खुद को हार के
किसके लिए पिरो रही फूल मनुहार के
खुद डूबना चाहती हो किसको तार के
किसके लिए सजे बोल अधरों पर प्यार के
बाट किसी की जोहती तुम कहाँ हो ?
 
किसके लिए है ये हिये की हलचल
किसके रूप पे हो गई इतनी पागल
ऐ-चातकी बता न कौन है तेरा बादल
कौन लायेगा तेरे लिए सतरंगी आँचल
ढूंढ़ती उसको तुम कहाँ हो?
 
मधुमय तेरे जीवन का कौन है मधु
ये बावली लहर बता कौन है तेरा सिन्धु
तुम किसकी हो यामिनी ,कौन है तुम्हारा इंदु
है किसके लिए बहकी नज़र अधर मृदु
समर्पित किसको तुम कहाँ हो ?
 
हिम की बाँह से बिछड़ी मंदाकिनी सी
साज के तारों से चटकी रागिनी सी
शशि की गोद से गिरती चाँदनी सी
माल्या से अलग हुई मलायीनी सी
तड़फती सी तुम कहाँ ?
 
जानती हो तेरा मन किसका है
जानती हो तेरा जीवन किसका है
भावों के सुमन संकलित हैं किसके वास्ते
श्रधा के कोमल सुमन मुकुलित हैं किसके वास्ते
न्यौछ्वर किसपे तुम कहाँ हो
 
किसें निरखती हो यूं निर्निमेष
किसको पाने को बदलती हो भेष
तेरे मरू जीवन का कुसुमित तरु है कौन
मन सरोवर की चारू तरंग है कौन
चाह में उसकी तुम कहाँ हो

पुस्तक “दो बूँद समुद्र के नाम” के “तुम कहाँ हो” के कुछ अंश

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