Saturday, October 15, 2011

मेरे घर के रास्ते

-डा. कृष्णा जनास्वामी
मेरे घर के रास्ते
उन पगडंडियों के बने
जिन्हें समय ने बनाये
पर
आज अस्पष्ट लग रहे |

फिर भी आज
उन पर होकर मेरे विचार
जब पहुंचते हैं
स्वर
मचान बन जाता है घर |
कागज़ और कलम उठती
विचारों पर और लोटती
फर्श कडकडाते सूखे
पत्ते
प्रतीक्षारत पसरे धूल की तरह |
ये न व्यवस्था है न मजबूरी
समय का ये तड़का शीशा
जिसके अनुभवों के विकृत
किरणों में
अनेक कणों का पाता हूँ पलायन |
क्रओंधाती इस चमक से
समा जाती बंद आँखों में
कहानियां सारे
टुकड़ों की
निह्स्तब्ध, आरक्षित व् स्वभावगत |

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