Saturday, November 5, 2011

कैसे कहूं दीवाली है

- अरविन्द योगी

आज की रात ये रौशन है
कल फिर सुबह काली है
झूठी होती इस दुनिया में
सच का दिया जो खाली है
कैसे कहूं दीवाली है !

टूटी अब हर रिश्तों की डाली है
रिश्ता भी अब एक गाली है
प्यार की बगिया जो खाली है
रोया हर एक माली है
कैसे कहूं दीवाली है !

तिनका तिनका बिखरा भारत अब
घुट घुट कर रोती भारत माता अब
देशप्रेम का उपवन अब ये खाली है
जिसकी भारत माँ ही माली है
कैसे कहूं दीवाली है !

भ्रष्टाचार की गहरी रात ये काली है
नेता करते देश की बिकवाली है
फैला हर ओर धोखा है दलाली है
बेचारी जनता, नेता अत्याचारी है
कैसे कहूं दीवाली है !

देश भक्ति का दिया जो खाली है
देश प्रेम की गर्म रक्त से
सुलग रहे हर देश भक्त से
नयी क्रांति आने वाली है
कैसे कहूं दीवाली है !

जलो तुम स्वरक्त से दिया भर
भारत माँ तुम्हे जगाने वाली हैं
भारत की जगमग ज्योति से
दुनिया हुयी उजाली है
दूर नहीं अब नव भारत की
कुछ ही दूर दीवाली है
पर कैसे कहूं दीवाली है !

यह कविता क्यों ? आतंकवाद , भ्रस्ताचार , बलात्कार , अत्याचार जाने कितने ही दिए जल रहे हैं भारत में अब और इनमे तेल बन कर जल रहा है भारत का हर आदमी !

हर ह्रदय दुखी है एक क्रांति चाहिए भारत को! नव भारत की दीवाली अभी दूर है उठिए जागिये और नव भारत की दीवाली लाने को क़मर कस लीजिये फिर मनाये हर रोज होली है दीवाली है !

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