Thursday, October 27, 2011

खाने की कीमत (लघुकथा)

- डा. अनिल यादव
आज डॉ.विवेक के बेटे डॉ.राजीव की शादी का रिसेप्शन है। शहर के लगभग सभी गणमान्य नामों को आमंत्रण है। सभी आयेंगे भी ऐसा ही विश्वास है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि डॉ.विवेक न केवल एक चिकित्सक हैं बल्कि राजनैतिक रसूख भी रखते हैं। उन्हें लोग एक तावदार डॉक्टर के रुप में भी देखते हैं। उनके बेटे ने भी एम.एस. करके पिताजी के साथ नाम करना शुरु कर दिया है। बहू भी डॉक्टर ढूंढी।
पार्टी शबाब पर थी। इसी बीच काउंटर के एक कोने में शोर सुनाई पड़ा। डी.जे. के शोर में भी आवाज साफ सुनाई पड़ रही थी। मारो स्स्साले को... हरामख़ोर है। मैं अपने को रोक नहीं पाया।
घटनास्थल पर पहुँचा तो देखा एक दस-बारह बरस के बच्चे को कई लोग लात-घूँसों से मार रहे थे। मुझे बताया गया कि यह लड़का खाना खा रहा था। डॉक्टर साहब के ठेकेदार साले ने पकड़ लिया। जब उन्होंने पीटना शुरु किया तो उनके साथ और भी हाथ उठ गये।
लड़का काफी रो रहा था। वह बता रहा था कि उसका भाई कॉफी काउंटर पर काम कर रहा है। वह उसी के साथ था। उसे उसके भाई के सामने लाया गया। डॉक्टर साहब के साले गरजे-
'क्यों बे! ये तेरा भाई है।'
'जी साहब'
'तो यह खाना खायेगा।'
'नहीं साहब'
'तेरे को पैसा नहीं मिलेगा क्या? तू इसे क्यों लाया? जानता है एक प्लेट की कीमत क्या है? छः सौ रुपये हैं। साले... अपनी अम्मा... बीबी... भाई-बहन सबको लाके खिला।' इतना कहकर उन्होंने दो झापड़ रसीद किये। 'कुत्तों... सूअर के औलादों... इसी तरह भीख माँगते रह जाओगे।'
कुछ लोगों ने हंगामा देखकर उनको रोकने की कोशिश की परंतु वो कहाँ मानने वाले। नॉन-स्टॉप गाली दिये जा रहे थे।
हंगामे के दौरान उन्होंने देखा विधायक जी आ गये हैं। लड़के को छोड़कर वे विधायक जी की तरफ मुड़ गये। विधायक जी को प्रणाम कर उन्होंने पूछा, 'और लोग कहाँ हैं विधायक जी।'
'गाड़ी में हैं' ,विधायक जी ने कहा।
'अरे सुक्खू! विधायक जी के सभी लोगों को भीतर खाने के लिए बुला ला।' इतना कहकर डॉक्टर साहब के साले ने विधायक जी के लिए प्लेट लगाना शुरु कर दिया। मार खाया बच्चा कॉफी टेबल के पास आँसू बहा रहा था। उसका भाई कॉफी बनाने में जुट गया। कभी वह कॉफी के भाप को देखता तो कभी अपने रोते भाई को। इसी बीच उसके आँख से टपके दो बूँद कॉफी मशीन पर गिरकर फना हो गये।

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