Thursday, November 17, 2011

साये की तलाश

- डा. रंजू सिंघ

एक पेड़ का घना साया कभी
मिल न सका मुझे,
ज़िन्दगी की धूप में कुछ यूं
झुलसा ये तन-बदन,
धूप जो चमकती रही,
और मैं झुलसती रही,
ज़िन्दगी अपनी ही
रफ़्तार से चलती रही;
कभी कभी बादल भी
यूं तो जिंदगी में छाया,
कभी घना कोहरा सा
ढकने मुझ को आया,
पर एक परछाई भी
मिल न सकी मुझे,
वक़्त गुज़रता रहा,
मैं भी चलती गई;
कभी थम सी गई,
कभी सिमट भी गई,
कभी कुमला भी गई,
कभी घबरा सी गई,
पर फिर भी भूल से ही,
एक पेड़ का घना साया कभी
मिल न सका मुझे ..

1 comment:

  1. ਇਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੰਵੇਦਨਾ ਭਰਪੂਰ ਕਵਿਤਾ , ਡਾ ਰੰਜੂ ਜੀ ਦੀ ਇਨਸਾਨੀ ਹਿਰਦੇ ਦੀ ਵੇਦਨਾ ਦਾ ਬਹੁਤ ਹੀ ਗੇਹਰਾ ਇਹਸਾਸ ਪਾਠਕ ਨੂੰ ਕਰ੍ਵੰਦੇ ਹਨ.

    ReplyDelete