Tuesday, October 25, 2011

आज

-वीरेन्द्र शर्मा 'योगी'

आँख मेरी नम नहीं है दिल मगर रोया है आज |
ऐसा लगता है के जैसे बहुत कुछ खोया है आज |

कल जो बोया था वो ही तो काटते हो आजकल,
और कल भी काटना है वो ही जो बोया है आज |
 
वो सुलाना चाहता है मुझ को गहरी नींद में,
मैं जगाना चाहता हूँ उस को जो सोया है आज |

जिस का दामन थाम के सीखा था चलना-बोलना,
अपने कांधे पे उसी की लाश को ढोया है आज |

दर्द का एहसास उस को 'योगी' अब होता नहीं,
कल तलक वो जागता था,हाँ मगर सोया है आज |

No comments:

Post a Comment