-वीरेन्द्र शर्मा 'योगी'
आँख मेरी नम नहीं है दिल मगर रोया है आज |
ऐसा लगता है के जैसे बहुत कुछ खोया है आज |
कल जो बोया था वो ही तो काटते हो आजकल,
और कल भी काटना है वो ही जो बोया है आज |
वो सुलाना चाहता है मुझ को गहरी नींद में,
मैं जगाना चाहता हूँ उस को जो सोया है आज |
जिस का दामन थाम के सीखा था चलना-बोलना,
अपने कांधे पे उसी की लाश को ढोया है आज |
दर्द का एहसास उस को 'योगी' अब होता नहीं,
कल तलक वो जागता था,हाँ मगर सोया है आज |
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