Monday, November 7, 2011

आखिर क्यूँ? (Edited by Editor)

- डा. रंजू सिंह

हम न गुज़रें,
तेरी गली के
पास से भी कभी,
चले आते हो
तुम फिर भी
मेरी ओर
आखिर क्यूँ?

हम न लायें
ज़िक्र भी तेरा
जुबां पर अपनी
तुम आ जाते हो
फिर भी
मेरी हर गुफ्तगू में क्यूँ?

राहें जुदा,
घर हैं जुदा,
जुदा तो ख्यालात भी,
मिल जाता है
तेरा का हर छोर
मेरी ही गली से
फिर क्यूँ?

कर लिया है
यूं तो मैंने इलाज
दर्द-ए-दिल का,
याद आ जाते हो
किसी तरह
मुझे हर सुबह-ओ-शाम
तुम फिर क्यूँ?

प्यार नहीं,
आरज़ू नहीं
दिलकशी नहीं
तन्हाई भी नहीं,
महक सी आती है
मुझे फिर भी
तेरे गीतों से
आखिर क्यूँ?

टूट चूका दिल,
टूट चूका रिश्ता,
टूट गए ख्वाब,
खो गए तुम,
खो गयी मैं,
फिर भी याद तेरी
आती है
नजाने पल-पल क्यूँ?

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